गरीब की भूख//Poor hunger!

 मनीषा नाम की एक लड़की जो रेलवे स्टेशन पर भीख मांगा करती थी जो लोग उसे भीख देते थे मनीषा उस पैसे से खाना खरीदा करती थी मनीषा हर दिन रेलवे स्टेशन पर भीख मांगती थी लेकिन एक दिन मनीषा को किसी ने भीख नहीं दिया उसे अपने पास से भगा देते थे लेकिन वहीं पर मोहन नाम का एक व्यक्ति था जो यह सब देख रहा था उसे उस लड़की पर दया आ रहा था जब मनीषा वहां से उदास होकर जा रही थी तभी मोहन ने मनीषा को आवाज लगाई मनीषा आवाज सुनकर रुक जाती है मोहन मनीषा से पूछता है तुम पैसे का क्या करती हो मनीषा बोलती है मैं पैसों से खाना खरीदती हूं मोहन को लगा मनीषा झूठ बोल रही है तब मोहन ने बोला चलो मैं तुम्हें


गरीब की भूख//Poor hunger!
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खाना खरीद कर दे देता हूं मनीषा खाना लेकर चली जाती है अगले दिन मनीषा रेलवे स्टेशन पर फिर भीख मांगने आ जाती है मोहन मनीषा को देखकर उसके पास जाता है और पूछता है तुम्हें खाना चाहिए मनीषा हां बोलती है मोहन मनीषा को खाना खरीद कर दे देता है खाना लेकर मनीषा वहां से चली जाती है मोहन मन में सोचता है आखिरकार मनीषा खाना लेकर कहां जाती है जब अगले दिन मनीषा रेलवे स्टेशन पर फिर से भीख मांगने आई तो मोहन ने मनीषा को खाना खरीद कर दे दिया और मोहन मनीषा का पीछा करने लगा मनीषा खाना लेकर जाने लगी वह बहुत सारी गलियों से जा रही थी और अचानक से कहां गायब हो गई मोहन को पता नहीं चला मोहन वापस आ गया और सोचने लगा मैं तो पता लगा कर ही रहूंगा वह खाना कहां लेकर जाती है जब अगले दिन मनीषा भीख 



मांगने रेलवे स्टेशन आती है तो मोहन मनीषा को खाना खरीद कर दे देता है और बोलता है खाना गरम है तुम यही खा लो नहीं तो रास्ते में ठंडे हो जाएंगे मनीषा बोलने लगी नहीं नहीं मैं अपने घर जाकर आराम से खा लूंगी और मनीषा खाना लेकर जाने लगी मोहन भी मनीषा का पीछा करने लगा इस बार मोहन ने कोई गलती नहीं की मोहन ने मनीषा को एक घर के अंदर जाते हुए देख लिया मोहन खिड़की से देखने लगा आखिर घर के अंदर क्या हो रहा है मोहन ने घर के अंदर एक 6 साल के छोटे बच्चे को देखा और एक महिला को देखा जो जमीन पर सोई हुई थी तभी 6 साल के बच्चे ने बोला मां उठो दीदी खाना लेकर आई है मां उठती है और बोलती है बेटी तुम्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा मैं कुछ कर भी नहीं सकती हूं मोहन सब खिड़की से देख रहा था जब उससे नहीं रहा



 गया तो वह घर के अंदर घुस गया और बोला मुझे माफ कर दीजिए बिना बोले आ गया हूं मनीषा मोहन को देख कर बोलती है आप यहां कैसे आ गए मोहन बोलता है मैं जानना चाहता था आखिर तुम खाना लेकर कहां जाती हो मोहन मनीषा की मां से पूछता है आखिरकार आप लोगों की ऐसी हालत कैसे हुई मनीषा की मां बोलती है 5 वर्ष पहले मैं और मेरे पति गांव जा रहे थे तभी उस बस का एक्सीडेंट हो  गया जिसके कारण मेरे पति की मृत्यु हो गई और मेरे दोनों पैर टूट गई मैं अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं कर सकती हूं मोहन बोलता है अब आप चिंता मत करिए इन दोनों की देखभाल मैं करूंगा और इन्हें अच्छे स्कूल भी भेजूंगा। 



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