दिनेश नाम का लड़का जो बचपन में अनाथ हो गया था। दिनेश के माता-पिता की मृत्यु बस एक्सीडेंट में हो गया था। उस वक्त दिनेश की उम्र 5 वर्ष था। दिनेश को उसके चाचा ने सहारा दिया। दिनेश की चाची दिनेश से नफरत करती थी। लेकिन दिनेश के चाचा के कारण दिनेश उसके पास रहने लगा। लेकिन दिनेश को उसकी चाची बहुत परेशान करती थी। दिनेश की चाची अपने बेटे को अच्छे स्कूल में भेजती थी। दिनेश का चचेरा भाई दिनेश से 2 वर्ष बड़ा था। दिनेश का भाई दिनेश को अपना भाई मानता था। वह दिनेश से नफरत नहीं करता था। दिनेश के चाचा एक सरकारी कर्मचारी थे। दिनेश के चाचा जब काम पर चले जाते थे। तब उसकी पत्नी दिनेश से बहुत काम करवाती थी। उसकी चाची नहीं चाहती थी। दिनेश पढ़े-लिखे उसकी चाची अपने बेटे को ही प्यार करती थी।1 दिन दिनेश ने अपने चाचा को बोला मैं भी पढ़ना चाहता हूं। चाचा बोले ठीक है। कल मैं तुम्हारा अच्छा स्कूल में
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Anjan Larki ki Kahani। अंजान लड़की की कहानी
नाम लिखवा देता हूं। तभी वहां पर दिनेश की चाची आ जाती है। और बोलती है यह पढ़ लिख कर क्या करेगा। ऐसे भी पढ़ाने के लिए हमें किसी ने पैसे नहीं दिए हैं। दिनेश यह बात सुनकर वहां से चला जाता है। दिनेश के चाचा बोलते हैं। पढ़ने दो पढ़- लिख कर हमारे लिए जरूर कुछ करेगा। उसकी पत्नी बोलती है। वह पढ़-लिखकर कुछ नहीं करेगा। हमारे सिर्फ पैसे बर्बाद होंगे। तब दिनेश के चाचा अपनी पत्नी को समझाते हैं। अगर दिनेश को सरकारी स्कूल में नाम लिखवा दे। तो तुम्हें कोई समस्या तो नहीं होगी उसकी पत्नी बोलती है। दिनेश को किसी स्कूल में नाम नहीं लिखवाना है। दिनेश के चाचा अपनी पत्नी को बोलते हैं। तुम थोड़ा सोचो दिनेश अगर सरकारी स्कूल में पढ़ेगा तो उसका खाने का खर्चा भी बचेगा। स्कूल से कुछ ना कुछ मिलेगा और पढ़ाने में कोई खर्चा नहीं आएगा। उसकी पत्नी मान जाती है। और अगले दिन दिनेश के चाचा दिनेश को एक सरकारी स्कूल में नाम लिखवा देते हैं। दिनेश की चाची दिनेश को हमेशा परेशान करती थी। जब दिनेश घर में पढ़ने को बैठा था। तब उसकी चाची कोई ना कोई काम दे देती थी। जिस कारण से दिनेश सही से पढ़ाई भी नहीं कर पा रहा था। दिनेश की चाची दिनेश को हमेशा ताने मारा करती थी। लेकिन दिनेश चुपचाप रहता था। दिनेश के चाचा दिनेश को प्यार करते थे।
जिस कारण से दिनेश उस घर में रह रहा था। 1 दिन दिनेश ने अपने चाचा को बोला चाचा, चाची हमें पढ़ाई करने नहीं देती है। क्या आप मेरे कमरे में एक बल्ब लगा सकते हैं। दिनेश के चाचा बोले ठीक है। बेटा मैं तुम्हारे कमरे में बल्ब लगा दूंगा। लेकिन तुम्हारी चाची को पता नहीं चलना चाहिए। दिनेश बोलता है। ठीक है चाचा मैं बल्ब सिर्फ रात में चालू करूंगा। जब मुझे पढ़ाई करना होगा अगले दिन दिनेश के चाचा दिनेश के कमरे में एक बल्ब लगा देते हैं। अगले दिन दिनेश स्कूल जाता है। और जब स्कूल से छुट्टी होती है। और अपने घर आता है। उसकी चाची बोलती है। अब स्कूल से आ गए हो तो अपने काम में लग जाओ। दिनेश दिन भर काम करके रात में पढ़ाई करता था। 1 दिन दिनेश की चाची की नींद रात में खुल गई। और जब अपने कमरे से बाहर आए तो देखी कि दिनेश के कमरे से लाइट आ रही है। दिनेश की चाची दिनेश के कमरे में जाती है। और बोलती है। यह बल्ब कौन लगाया है? दिनेश कुछ नहीं बोलता है। उसकी चाची दिनेश को मारने लगती है। दिनेश रोने लगता है। रोने की आवाज सुनकर दिनेश के चाचा की नींद खुल जाती है। वह तुरंत दिनेश के कमरे में जाते हैं। जब दिनेश के चाचा दिनेश के कमरे में जाते हैं तो देखते हैं उसकी पत्नी दिनेश कुमार रही है। दिनेश के चाचा दिनेश को पकड़ लेते हैं। और अपने पीछे कर लेते हैं। और अपनी पत्नी से पूछते हैं। तुम दिनेश को क्यों मार रही हो? उसकी पत्नी बोलती है। यह रात में पढ़ाई कर रहा है। दिनेश के चाचा बोलते हैं। तो तुमको इस से क्या परेशानी है? बिजली बिल कौन देगा इसका बाप जो अब जिंदा नहीं रहा। और देखो यह बल्ब कहां से लाया है। अब यह घर में चोरी भी करने लगा हैं। मैं तो बोलती हूं। इसे अभी इस घर से निकाल दो दिनेश के चाचा बोलते हैं। यह बल्ब मैंने खुद लगाई है। और एक बल्ब पर
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कितना बिजली बिल आएगा। उसकी पत्नी बोलती है। तुम हो जो इसकी मदद कर रहे हो। अब मेरा इस घर में कोई काम नहीं है। अब मैं और मेरा बेटा इस घर को छोड़कर जा रहे हैं। रहो तुम इस मनहूस के साथ उसकी पत्नी अपने बेटे को उठाती है। और अपने साथ लेकर जाने लगती है। तब उसका पति बोलता है। तुम घर छोड़कर मत जाओ जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा। मैं बल्ब खोल लेता हूं। दिनेश बहुत उदास हो जाता है। लेकिन दिनेश ने हार नहीं मानी वह दिया बार के रात में पढ़ाई करने लगा। दिनेश की उम्र 15 वर्ष हो गया था। और दिनेश की चाची दिनेश को दिया बार के पढ़ते हुए देख ली उसके बाद दिनेश की चाची दिनेश को फिर मारने लगी और बोली जो तुम दिया बार के पढ़ रहे हो? उस दिया मैं जो तेल है। उस तेल का पैसा कहां से आएगा। आवाज सुनकर दिनेश के चाचा वहां आ जाते हैं। और अपनी पत्नी से पूछते हैं क्या हुआ तुम दिनेश को क्यों मार रही हो उसकी पत्नी बोलती है। रात में यह दिया बार के पढ़ाई कर रहा है। तेल का पैसा कहां से आएगा।उसका पति बोलता है। दिनेश ऐसे नहीं मानेगा अब यह बहुत परेशान कर रहा है। उसे तो अब घर से निकाल देना चाहिए। दिनेश की चाची बोलती है। तुम सही बोल रहे हो इसको घर से निकाल देना चाहिए। दिनेश के चाचा दिनेश को हाथ पकड़कर घर के बाहर लेकर चले जाते हैं। और बोलते हैं बेटा मुझे माफ करना मैं तुम्हें अपने घर से निकाल रहा हूं। लेकिन मैं क्या करूं तुम्हारी चाची तुम पर बहुत जुल्म करती है। जाओ तुम अपना जिंदगी अच्छे से जियो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ सदा रहेगा। दिनेश घर छोड़ कर चला जाता है 7 वर्षों बाद दिनेश की चाची को खतरनाक बीमारी हो जाती है। उसके पति इलाज में बहुत पैसे खर्च हो रहे थे। दिनेश की चाची के इलाज के लिए 50 लाख की जरूरत थी। दिनेश के चाचा ने अपने बेटे को फोन करके अपने पास बुलाया और अपने बेटा को बोला तुम्हारी मां की ईलाज के लिए 50 लाख की जरूरत है। तुम कितना दे सकते हो? उसका बेटा बोलता है। पिताजी मेरी इनकम इतना नहीं है कि मैं 50 लाख दे सकता हूं। मैं सिर्फ 5 लाख का मदद कर सकता हूं। दिनेश के चाचा सोचने लगे इतने पैसों का इंतजाम कैसे होगा? दिनेश के चाचा अपने बेटे को बोलते हैं। बेटा मैं गांव जा रहा हूं वहां से कुछ पैसे का इंतजाम हो जाएगा अपनी जमीन बेच दूंगा। और दिनेश के चाचा टेंपो में बैठकर रेलवे स्टेशन जा रहे थे। तभी ट्रैफिक जाम में फस जाते है। दाएं एक कार था। और उस कार में दिनेश था। तभी दिनेश की नजर उस टैंपू पर पड़ा जिसमें दिनेश के चाचा
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थे। दिनेश अपनी कार से उतरता है। और अपने चाचा के पास जाता है। और अपने चाचा के पैर छू ता है। दिनेश के चाचा दिनेश को नहीं पहचान पाते हैं। वह पूछते हैं तुम कौन हो? मैं नहीं पहचान रहा हूं। दिनेश बोलता है मैं आपका दिनेश हूं। जिससे आपने घर से निकाल दिया था। दिनेश के चाचा दिनेश को पहचान जाते हैं। और दिनेश को गले से लगा लेते हैं। दिनेश अपने चाचा से पूछता है। आप कहां जा रहे हैं। चाचा बोलते बेटा मैं अपने गांव जमीन बेचने जा रहा हूं। दिनेश पूछता हैं चाचा आप गांव जमीन बेचने क्यों जा रहे हैं। दिनेश के चाचा बोलते हैं। बेटा तुम्हारी चाची के इलाज के लिए 50 लाख चाहिए। इसलिए मैं गांव जा रहा हूं। दिनेश बोलता है मेरे होते हुए आप जमीन क्यों बेचेंगे मैं हूं ना। आप मेरी कार में बैठये और चलिए चाची के पास दिनेश के चाचा और दिनेश हॉस्पिटल पहुंच जाते हैं। दिनेश डॉक्टर से बात करता है और बोलता है। आप इलाज शुरू कर दीजिए मैं पैसे का इंतजाम कर दूंगा। दिनेश अपने चाचा को बोलता है। चाचा आप यही रहिए मैं पैसे लेकर आता हूं। 5 घंटे के बाद दिनेश हॉस्पिटल पैसे लेकर आता है। और हॉस्पिटल में पैसा जमा कर देता है। दिनेश के चाचा दिनेश को हाथ जोड़ कर बोलते हैं। बेटा तुम्हारी चाची ने तुम्हें कभी अपना नहीं समझा लेकिन आज देखो तुमने अपनी चाची को बचाने के लिए 50 लाख का इंतजाम कर दिया। दिनेश के चाचा दिनेश से पूछते हैं। बेटा तुमने इतने सारे पैसे का इंतजाम कैसे किया? दिनेश बोलता है मैंने अपनी कार और घर बेच दिया। चाचा बोलते हैं बेटा तुमने ऐसा क्यों किया दिनेश बोलता है। कार और घर में बाद में खरीद सकता हूं। लेकिन अगर मेरी चाची नहीं रही तो मैं उन्हें कहां से लाऊंगा।
भिखारी का दिल सोने से कम नहीं /A beggar's heart is nothing short of gold
दिनेश के चाचा के आंखों से आंसू आ जाते हैं। और दिनेश को गले से लगा लेते हैं। दिनेश के चाचा बोलते हैं। चलो अपनी चाची से मिलने जब दिनेश अपनी चाची के पास जाता है। तो दिनेश के चाचा बोलते हैं। देखो तुमसे मिलने कौन आया है? दिनेश की पत्नी उस लड़के को नहीं पहचान पाती है। तभी दिनेश के चाचा बोलते हैं। यह अपना दिनेश से जिसे हमने अपने घर से निकाल दिया था। और तुम्हारी जान दिनेश ने ही बचाई है। दिनेश ने तुम्हारे इलाज के लिए अपना घर और कार भी बेंच दिया। दिनेश की चाची बोलती है। बेटा मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया था। दिनेश बोलता है जो बीत गया है। उसे याद करके आज दु:खी मत होइए। आज और अभी से नई जिंदगी की शुरुआत करिए। दिनेश की चाची बोलती है। बेटा तुमने मुझे क्यों बचाया है। तुम्हारी जगह कोई दूसरा लड़का होता तो वह चाहता कि मैं मर जाऊं। दिनेश बोलता है। मैंने बचपन में अपनी मां को खो दिया था लेकिन अब मैं अपनी मां को नहीं खोना चाहता हूं। यह बात सुनकर दिनेश के चाचा और चाची की आंखों में आंसू आ जाते हैं। और दिनेश को गले से लगा लेते हैं।
Moral Of Story: किसी से नफरत नहीं करना चाहिए।
Nice story
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